नई दिल्ली। सट्टा का नाम सुनते ही क्रिकेट का नाम दिमाग में घूमने लगता है। ऐसा इसलिए क्योंकि देश में सबसे अधिक पैसा और जुनून क्रिकेट में ही है। हम आपको सट्टा के इतिहास के बारें में बताने जा रहे हैं।
इसकी शुरुआत न्यूयॉर्क कॉटन एक्सचेंज से हुई थी जो बॉम्बे कॉटन एक्सचेंज से भेजी जाने वाली रुई के शुरुआती और अंतिम दामों की बोली लगाने पर हुई। इसे सट्टा भी कहा जाता था, जिसपर 1961 में न्यूयॉर्क कॉटन एक्सचेंज ने रोक लगा दिया था।
सट्टा एक नंबरों खेल है, इसमें किस्मत का साथ होना बहुत मायने रखता है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 1961 के बाद भारत में कल्याणीजी भगत और रतन खत्री को सट्टा किंग कहा जाता है जो बंटवारे के बाद कराची से मुंबई आ गए। यहां दोनों ने मिलकर मुंबई के आसपास के इलाकों में सटका-मटका के खेल को प्रचलन में ला दिया।
दोनों मिलकर काल्पनिक उत्पादों के शुरुआती और अंतिम दामों पर सट्टेबाजी करवाना शुरू किया। इनके गेम में कागज के टुकड़ों पर नंबर लिखकर एक मटके में रखा जाता था। एक व्यक्ति उस कागज के टुकड़े को बाहर निकालता और नंबर के हिसाब से विजेता की घोषणा करता।
आपको बता दें कि मटका गेम अंकों के जरिए खेला जाता है। सट्टेबाजी में इस्तेमाल होने वाली 0 से 9 के बीच की किसी भी अंक को एकल कहते हैं, 00 से 00 के बीच की दो संख्याओं को जोड़ी कहा जाता है। यह खेल भारत ही नहीं दुनियाभर में बड़े स्तर पर खेला जाता है।