कानपुर। कानपुर एनकाउंटर (Kanpur Encounter) में मारे गए हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे (Vikas Dubey) पर सिर्फ नेता और पुलिस वाले ही मेहरबान नहीं थे। केडीए ने भी खूब दरियादिली दिखाई। बताते हैं कि केडीए के कुछ अफसर और बाबू विकास और उसकी काली कमाई संभालने वाले जय बाजपेई समेत अन्य लोगों के इशारों पर काम करते थे। इन्हीं के बल पर विकास और उसके गुर्गे शहर में बगैर नक्शे और सील इमारतों में चोरी छिपे निर्माण करवाने का ठेका तक ले लेते थे।
कई इमारतों में केडीए अफसरों की नाक के नीचे निर्माण हुए, लेकिन कार्रवाई कुछ नहीं हुई। केडीए के तमाम खाली प्लाटों पर विकास का कब्जा रहा। तीन साल पहले एक केडीए वीसी ने कल्याणपुर क्षेत्र में ध्वस्तीकरण अभियान चलाकर एक जमीन को कब्जा मुक्त कराया था। वह जमीन विकास दुबे की शह पर कब्जाई गई थी। केडीए के अन्य अफसर वर्षों इसे नजरंदाज करते रहे थे।
करीब तीन साल पहले केडीए में फर्जी रजिस्ट्री कांड का खुलासा हुआ था। बताया जाता है कि पनकी क्षेत्र में कई बड़े प्लाटों की रजिस्ट्री फर्जी तरीके से कर दी गई थी। करोड़ों की जमीनें कौड़ियों के भाव बेची गई थीं। इनमें से कई जमीनों की फाइलें केडीए से गायब मिलीं। इसमें कई बाबू फंसे थे। बाद में यह जांच भी दबा दी गई। बताते हैं कि जांच को अंजाम तक न पहुंचाने के पीछे विकास का भय था।
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एक चीफ इंजीनियर की बेनामी संपत्तियों और कालेधन की जांच के लिए तो आयकर विभाग से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक को शिकायत हुई। कुछ दिन जांच चली फिर ठंडे बस्ते में चली गई। बताते हैं कि विकास दुबे एंड कंपनी, केडीए के कुछ अफसर और शहर के आठ-10 कारोबारियों का सिंडीकेट चलता था। एक दूसरे को सहयोग करके संपत्तियां बनाने का खेल था।
मन मुताबिक सौदा कराने में था माहिर
जमीन हथियाने और उसका मनमुताबिक सौदा कराने में विकास बहुत माहिर था। केडीए में उसने ऐसा जाल बिछा रखा था कि हर जगह उसकी तूती बोलती। बताते हैं कि विकास के इशारे पर नीलामी वाले प्लाटों में बोलियां तक नहीं लगती थीं और उनका आवंटन कर दिया जाता था। कई नीलामी तो सिर्फ कागजों में हुईं। यह खेल कोई एक दो साल नहीं बल्कि लंबे समय से चलता आ रहा था। नीलामी वाले अधिकतर भवन और प्लाट उसी के हिस्से आते थे, जिसे विकास या उसके गुर्गे चाहते थे। इस खेल को कैसे अंजाम दिया जाता था, यह एसआईटी की जांच में सामने आ सकता है।
चीफ इंजीनियर तक थे मेहरबान
सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि केडीए के एक चीफ इंजीनियर विकास के एक गुर्गे को खुद ही सलाह देते थे कि निवेश कैसे करना है। ये वही चीफ इंजीनियर हैं जिन्होंने सपा नेता महताब आलम को दो अतिरिक्त मंजिल बनाने की मंजूरी दी थी और वह भवन भरभराकर गिर गया था। इसमें दबकर कई मजदूरों की जान गई थी। इसके अलावा विकास दुबे का केडीए के कई बाबुओं पर भी सिक्का चलता था। कब कौन सी जमीन नीलाम होनी है? कौन से प्लाट की किस्तें जमा नहीं हो रहीं? कहां-कहां, कितने प्लाट खाली हैं? कौन सा बिल्डर संकट में फंसा है। इन सब बातों की जानकारी विकास एंड कंपनी तक पहुंचती थी। विकास इन्हीं सूचनाओं के आधार पर अपनी गोटें बिछाता था और जमीनों का सौदा तय करवाता था।
रिपोर्ट: तंजीम राणा